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1. |
मुझे इस शहर (मक्का) की कसम |
2. |
और तुम इसी शहर में तो रहते हो |
3. |
और (तुम्हारे) बाप (आदम) और उसकी औलाद की क़सम |
4. |
हमने इन्सान को मशक्क़त में (रहने वाला) पैदा किया है |
5. |
क्या वह ये समझता है कि उस पर कोई काबू न पा सकेगा |
6. |
वह कहता है कि मैने अलग़ारों माल उड़ा दिया |
7. |
क्या वह ये ख्याल रखता है कि उसको किसी ने देखा ही नहीं |
8. |
क्या हमने उसे दोनों ऑंखें और ज़बान |
9. |
और दोनों लब नहीं दिए (ज़रूर दिए) |
10. |
और उसको (अच्छी बुरी) दोनों राहें भी दिखा दीं |
11. |
फिर वह घाटी पर से होकर (क्यों) नहीं गुज़रा |
12. |
और तुमको क्या मालूम कि घाटी क्या है |
13. |
किसी (की) गर्दन का (गुलामी या कर्ज से) छुड़ाना |
14. |
या भूख के दिन खाना खिलाना |
15. |
रिश्तेदार यतीम को |
16. |
या ख़ाकसार मोहताज को |
17. |
फिर तो उन लोगों में (शामिल) हो जाता जो ईमान लाए
और सब्र की नसीहत और तरस खाने की वसीयत करते रहे |
18. |
यही लोग ख़ुश नसीब हैं |
19. |
और जिन लोगों ने हमारी आयतों से इन्कार किया है यही लोग बदबख्त हैं |
20. |
कि उनको आग में डाल कर हर तरफ से बन्द कर दिया जाएगा ********* |
© Copy Rights:Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,Lahore, Pakistan |
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