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1. |
हमने (इस कुरान) को शबे क़द्र में नाज़िल (करना शुरू) किया |
2. |
और तुमको क्या मालूम शबे क़द्र क्या है |
3. |
शबे क़द्र (मरतबा और अमल में) हज़ार महीनो से बेहतर है |
4. |
इस (रात) में फ़रिश्ते और जिबरील (साल भर की) हर बात का हुक्म लेकर अपने परवरदिगार के हुक्म से नाज़िल होते हैं |
5. |
ये रात सुबह के तुलूअ होने तक (अज़सरतापा) सलामती है ********* |
© Copy Rights:Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,Lahore, Pakistan |
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